संवाददाता इरफान कुरैशी
लखनऊ। बकरीद जिसे ईदुल अज़हा के नाम से भी जाना जाता है। अबकी बार 10 जुलाई को भारत में मनाई जाएगी। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार यह पर्व मीठी ईद के ठीक दो महीने के बाद इस्लामिक कैलेंडर के सबसे आखिरी महीने में 10 तारीख को मनाई जाती है। इस महीने में पूरी दुनिया से मुस्लिम संप्रदाय के लोग साउदी अरब स्थिति मक्का जाकर हज करते हैं। यहां पर बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी की जाती है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्स्लां के बेटे की कुर्बानी नहीं हो पायी। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्स्लां और इस्माइल को अपना पैगंबर बना लिया और उनसे अपने लिए एक घर बनाने के लिए कहा। अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का यह घर पूरी दुनिया में खाने काबा के नाम से जाना जाता है। क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्स्लां की सुन्नत है। हज़रत इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर हैं। आपने तमाम उम्र अल्लाह के बन्दों की खिदमत में गुजार दी, करीब 90 साल की उम्र तक उनके कोई संतान नहीं हुई। तब उन्होंने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में हाथों को बुलंद कर दुआ की। और पर्वर्दिगार ने अपने दोस्त यानी खलील की दुआ को क़ुबूल कर उन्हें चाँद-सा बेटा इस्माइल अलैहिस्स्लां की शक्ल में अता फरमाया। इस्माईल थोडे से बड़े हुए थे कि हज़रत इब्राहिम को ख्वाब में अल्लाह का हुकुम हुआ कि इब्राहीम अपने बेटे इस्माईल को अल्लाह की रहा में कुबान करों। तब इब्राहीम अलैहिस्स्लां ने अपने बेटे इस्माइल को कुर्बानी के लिये तय्यार किया। तब से आज तक पूरी दुनिया के मुसलमान इस सुन्नत को हर साल अदा करते हैं।कुर्बानी अल्लाह की रज़ा के लिए होनी चाहिए। कुर्बानी का जानवर खूबसूरत और तंदुरुस्त एवं बे ऐब होना चाहिए। जिस पर कुर्बानी वाजिब है। कुर्बानी का जानवर दो या चार दांत का होना चाहिए। जिन लोगों के घर में बकरा नहीं होता है वे ईद से कुछ दिन पहले बाजार से बकारा खरीदकर उसे घर ले आते हैं। और फिर बकरीद के दिन उसकी कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी के जानवर को 3 हिस्सों में बांट दिया जाता है। पहला हिस्सा गरीब फकीरों में बांट दिया जाता है और दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों को भिजवाया जाता है और तीसरा हिस्सा घर में पकाकर खाया जाता है। ऐसा नहीं है कि आप पूरा का पूरा बकरा अपने लिए रख लिए, कुर्बानी में दान भी बेहद जरूरी है।