सुप्रीम कोर्ट ने फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेग्युलेशन एक्ट 2010 के प्रावधानों के बदलाव को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी बदलाव की संवैधानिक वैधता को सही ठहराते हुए कहा है कि इस मामले में सख्त प्रावधान जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 से लागू उक्त प्रावधान को सही ठहारते हुए कहा है कि विदेशी कंट्रिब्यूशन के गलत इस्तेमाल और प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त प्रावधान जरूरी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विदेशी डोनरों से फंड रिसीव करना पूर्ण अधिकार नहीं है और न ही ऐसा करने का अधिकार निहित है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि देश की राजव्यवस्था को विदेशी कंट्रीब्यूशन की ओर से प्रभावित किया जाना वैश्विक तौर पर माना गया है और ऐसे में कोई विदेशी डोनेशन को लेने का अधिकार नहीं जता सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ की फॉरेन फंडिंग को रेग्युलेट करने वाले कानून को बहाल रखते हुए कहा कि यह कानून संवैधानिक तौर पर वैलिड है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि कई बार विदेशी कंट्रीब्यूशन जिस उद्देश्य के लिए लिया जाता है उसका इस्तेमाल उसी उद्देश्य के लिए नहीं होता है। इसके लिए सख्त कानूनी प्रावधान जरूरी है क्योंकि पहले का तजुर्बा यही रहा हैकि फॉरेन कंट्रिब्यूशन का गलत इस्तेमाल कई बार हुआ है। बेंच ने कहा है कि कानूनी बदलाव से संबंधित धारा-7, 12 (1)(ए), 12 ए और 17 संवैधानिक दायरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था जिसमें केंद्र सरकार को एफसीआरए से संबंधित नोटिफिकेशन को चुनौती दी गई थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफसीआरए कानून के बदलाव का बचाव किया था और कहा था कि इसका उद्देश्य यह है कि विदेशी ताकतों को भारत के आंतरिक मसलों में दखल से रोका जाए। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि एफसीआरए संशोधन कानून का उद्देश्य यह है कि एनजीओ के फंड डायवर्जन और किसी तरह के कदाचार को रोका जाए।
केंद्र सरकार ने कहा था कि यह बदलाव जरूरी था क्योंकि कुछ विदेशी ताकतों द्वारा और विदेशी सरकारों की ओर से भारत के आंतरिक मामले और राजव्यवस्था में दखल की कोशिश की जा रही है। इस तरह की मंशा को रोकने के लिए कानूनी बदलाव किया गया है। इस बदलाव से एनजीओ की जवाबदेही और मॉनिटरिंग हो सकेगी।