
अमेठी। जनपद अमेठी में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की समीक्षा के क्रम में प्रशासन ने रात्रिकालीन निरीक्षण के ज़रिए स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत परखने की कोशिश की। मुख्य विकास अधिकारी सूरज पटेल द्वारा शुक्रवार देर रात जिला चिकित्सालय गौरीगंज, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अमेठी और संग्रामपुर का औचक निरीक्षण किया गया, जिसमें कई अनियमितताएं उजागर हुईं। वहीं कुछ दिन पूर्व जिलाधिकारी संजय चौहान द्वारा भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अमेठी का स्थलीय निरीक्षण किया गया था। दोनों निरीक्षणों ने जहाँ व्यवस्थागत खामियों को उजागर किया, वहीं एक बड़ा सवाल भी छोड़ गए—क्या जगदीशपुर का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रशासन की निगाहों से बाहर है?

मुख्य विकास अधिकारी द्वारा 16 मई की रात्रि 9:50 बजे जिला चिकित्सालय गौरीगंज से निरीक्षण की शुरुआत की गई। निरीक्षण के समय मुख्य चिकित्सा अधिकारी, उप जिलाधिकारी तथा अन्य चिकित्सकीय स्टाफ उपस्थित थे। यहाँ चिकित्सकों की पालीवार ड्यूटी निर्धारित नहीं पाई गई, न ही आपातकालीन कक्ष में भर्ती रोगियों की औषधीय पर्चियाँ तैयार की जा रही थीं। अस्पताल परिसर की स्वच्छता भी संतोषजनक नहीं थी।

रात्रि 10:46 बजे अमेठी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण किया गया, जहाँ ड्यूटी निर्धारण एवं रोगी विवरण संबंधी लगभग वही खामियाँ देखने को मिलीं। इसके बाद 11:25 बजे सीडीओ संग्रामपुर पहुंचे, जहाँ अपेक्षाकृत व्यवस्था बेहतर पाई गई। भर्ती रोगियों को समय से भोजन मिल रहा था और एक सामान्य प्रसव भी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ।
इससे पूर्व जिलाधिकारी संजय चौहान द्वारा भी अमेठी सीएचसी का स्थलीय निरीक्षण किया गया था। उन्होंने इमरजेंसी, प्रसव, टीकाकरण, जनरल वार्ड समेत पूरे अस्पताल की व्यवस्था को देखा और मरीजों से संवाद कर दी जा रही स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी ली। साफ-सफाई, उपकरणों और दवाओं की उपलब्धता की समीक्षा करते हुए सुधारात्मक निर्देश दिए गए।
लेकिन इन दोनों प्रशासनिक प्रयासों के बीच जगदीशपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण न होना सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न बन गया है। इस केंद् पर डॉ. संजय कुमार बीते 12 वर्षों से लगातार तैनात हैं। पहले सामान्य चिकित्सक के रूप में आए डॉ. संजय अब अधीक्षक पद पर कार्यरत हैं। यह नियुक्ति और वर्षों की तैनाती प्रदेश सरकार की ‘तीन वर्ष से अधिक नीतिगत तैनाती’ और ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को खुली चुनौती देती है।
स्थानीय नागरिकों और सूत्रों के अनुसार इस निरंतर तैनाती के पीछे राजनीतिक संरक्षण, विभागीय गठजोड़ और जिम्मेदार अधिकारियों की निष्क्रियता है। जिले के स्वास्थ्य मंत्री खुद इसी क्षेत्र से विधायक प्रतिनिधि हैं, लेकिन इस मुद्दे पर उनकी चुप्पी जनता में निराशा और आक्रोश को बढ़ा रही है। सवाल यह भी है कि जब जिला प्रशासन द्वारा अमेठी व संग्रामपुर के CHC का निरीक्षण किया जा सकता है, तो जगदीशपुर को अब तक क्यों अनदेखा किया गया है?
जगदीशपुर CHC में निरीक्षण की अनुपस्थिति न केवल शासन की पारदर्शिता नीति पर सवाल उठाती है, बल्कि पूरे जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी। अस्पताल के भीतर का डर और मौन अब लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए गंभीर चेतावनी बनता जा रहा है।
जनता की अपेक्षा है कि जैसे सीडीओ और जिलाधिकारी ने अन्य स्वास्थ्य केंद्रों की सुध ली, वैसे ही जगदीशपुर के बहुचर्चित और विवादास्पद केंद्र पर भी शीघ्र कार्रवाई की जाए। वरना यह प्रशासनिक निष्क्रियता शासन की नीतियों की गंभीर अवहेलना के रूप में दर्ज की जाएगी।