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पश्चिम एशिया में चलने वाली धूल भरी आंधियों से आगे क्‍या बनने वाला है भारत में बारिश का कनेक्‍शन? नई स्‍टडी में खुलासा

Climate change-driven dust storms: जलवायु परिवर्तन (Climate change) की वजह से पश्चिम एशिया (West Asia) में धूल भरी आंधियों (Dust Storms) का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। लेकिन, संभव है कि इसके असर से भारत में मानसूनी बारिश (Monsoon Season Rainfall) में बढ़ोतरी होगी। यह दावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), भुवनेश्वर के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में किया है। इस अध्ययन को हाल में ‘क्लाइमेट ऐंड ऐटमॉस्फेरिक साइंस’ (Climate and Atmospheric Science) जर्नल में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के मुताबिक, पश्चिम एशिया के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल अरब सागर तक पहुंचती है और इससे दक्षिण एशिया में बारिश बढ़ सकती है। खासतौर पर तब जब भारतीय क्षेत्र में गंभीर सूखे के हालात हों।

इससे पहले हुए अध्ययन के मुताबिक, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल से भारत में एक या दो हफ्ते के अल्पकालिक समय में बारिश की दर बढ़ जाती है।

अध्ययन के मुताबिक, यह संभव इसलिए होता है क्योंकि इस धूल की वजह से अरब सागर गर्म होता है जो भारतीय क्षेत्र में नमी वाली हवाओं को गति देने का ऊर्जा स्रोत है।

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि यह संबंध अल नीनो (समुद्री धारा) की वजह से सूखे के वर्षों के दौरान अब अधिक मजबूत है। अल नीनो और अल नीना प्रशांत महासागर की जलवायु परिपाटी है जो पूरी दुनिया के मौसम में बदलाव की क्षमता रखती है।

अनुसंधानकर्ताओं ने संकेत किया है कि इस धूल से होने वाली बारिश का प्रभाव पूरे दक्षिण एशियाई मानसून पर होता है और यहां तक सूखे की स्थिति में भी बारिश को बढ़ाने में यह धमनी की तरह काम करती है।

आईआईटी, भुवनेश्वर में पृथ्वी समुद्र और जलवायु विज्ञान विद्यालय में सहायक प्राध्यापक वी विनोज ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय क्षेत्र बड़े पैमाने पर बारिश की कमी का सामना कर रहा है और मानसून की परिपाटी में भी बदलाव आया है।’

विनोज ने कहा, ‘हालांकि, वैश्विक तापमान में वृद्धि और हवाओं के रुख में बदलाव से हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले सालों में पश्चिम एशिया में धूल भरी आंधियों का दौर बढ़ेगा। अनुकूल परिस्थितियों में इन धूल कणों का परिवहन अरब सागर तक हो सकता है और इससे भारतीय क्षेत्र में अल्पकालिक लेकिन भारी बारिश का दौर आ सकता है।’

इस अनुसंधान में आईआईटी, भुवनेश्वर के ही गोपीनाथ नंदिनी और सत्येंद्र कुमार पांडेय शामिल हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी स्थापित किया कि मानवजनित कृत्यों की वजह से बारिश से कमी आई है और आने वाले दशकों में भी यह परिपाटी जारी रहेगी।

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Kisanmailnews

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