आजमगढ़ में लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में सपा के लिए कई चुनौतियां हैं। शिवपाल की नाराजगी के बाद क्या अखिलेश यादव एमवाई समीकरण पूरी तरह साध पाएंगे। क्योंकि बसपा मुस्लिमों को रिझाने में लगी है।
समाजवादी पार्टी जिस मुस्लिम- यादव (एमवाई) समीकरण के भरोसे आत्मविश्वास में रहती है, उसे अब आजमगढ़ में कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। यहां भारतीय जनता पार्टी यादव वोटों को अपनी ओर करने में लगी है तो बहुजन समाज पार्टी मुस्लिमों को रिझाने में। ऐसे में सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए यहां दोहरी प्रतिष्ठा दांव पर है। उनके लिए चुनौती बड़ी है। अपनी मौजूदा सीट बचाना है। मुसलिम यादव वोट बैंक को सेंधमारी से बचाए रखना है। साथ ही साबित करना है कि धर्मेंद्र यादव को बदायूं से आजमगढ़ लाकर लड़ाने का निर्णय सही था।
मुलायम सिंह यादव जब 2014 का लोकसभा चुनाव आजमगढ़ से लड़े थे तो उन्हें टक्कर देने के लिए भाजपा से रमाकांत यादव (अब सपा विधायक)व बसपा से गुडडू जमाली थे। चुनाव प्रचार के वक्त मुलायम को खतरे का अहसास हुआ तो उन्होंने शिवपाल यादव को आजमगढ़ में कैंप करने को कहा।
उनके पहुंचने से सपा की स्थिति बिगड़ने से पहले संभल गई। मुलायम भारी मतों से जीत चुके थे। अब शिवपाल की सपा से दूरी बढ़ती जा रही है। सपा ने उन्हें स्टार प्रचारक की सूची से बाहर कर रखा है। ऐसे में शिवपाल की अपील मायने रखेगी। वह अपने लोगों को किधर वोट करने क संकेत करेंगे, इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। पर इससे सपा को नुकसान तो होगा ही।
आजमगढ़ सपा का मजबूत गढ़ रहा है। यहां सपा लंबे समय से जीतती रही है। पर इस बार चुनौती अलग तरह की है। हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में सपा ने सभी 10 सीटे भाजपा लहर में जीत ली थीं। यहां एमवाई समीकरण भी सपा के पक्ष में रहता है। मुलायम सिंह यादव को जनता जिता चुकी है और अखिलेश यादव को भी। अब सैफई परिवार का तीसरा सदस्य सपा की ओर से मैदान में है। यहां उन्हें चुनौती देने के लिए एक बार फिर भाजपा से दिनेश लाल निरहुआ मैदान में हैं। आजमगढ़ में यादव भारी तादाद में हैं। यहां उनके एकमुशत वोट के लिए धर्मेंद्र यादव दिनेश यादव दोनों जूझ रहे हैं। पिछली बार के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अखिलेश यादव को कड़ी टक्कर दी थी।