
लखनऊ 29 अप्रैल लखनऊ का कैसरबाग इलाका इन दिनों एक नए ‘धुएं वाले पर्यटन स्थल’ के रूप में उभर रहा है, जहां न नजारा देखने का टिकट लगता है और न ही हुक्का पीने के लिए उम्र की कोई सीमा। यहां ‘कैफे डायना’, ‘नाइट मून’, ‘गॉडफादर’, ‘डिलोडेड’ और ‘कैफेटल’ जैसे हुक्का कैफे इतने बेखौफ हैं कि लगता है जैसे कानून ने इन्हें किसी VIP पास के साथ आशीर्वाद दे रखा हो।
रात 11 बजे के बाद अगर आप सोचते हैं कि पुलिस बहुत सख्त है, तो जनाब आप गलत हैं। सख्ती सिर्फ समोसे, चाय और पराठे बेचने वालों के लिए है। हुक्का कैफे चलाने वालों के लिए तो जैसे पुलिस ने ‘रात भर सेवा’ का ठेका ले रखा है। छोटे दुकानदारों की दुकानें बंद करवा कर पुलिस अपनी सतर्कता का सबूत देती है, और ठीक उसके बाद वहीं पास में हुक्का कैफे धुएं के बादल उड़ाते नज़र आते हैं – जैसे कानून का मज़ाक किसी ओपन माइक पर चल रहा हो।
नाबालिगों में ‘नशे का ट्रेंड ’ बनाने की मुहिम में जुटे इन कैफों में न लाइसेंस है, न फायर सेफ्टी, न ही प्रशासन का डर। यहां खुलेआम प्रतिबंधित तंबाकू उत्पाद परोसे जा रहे हैं। सूत्रों की माने तो कुछ में तो शराब तक परोसी जाती है। इलाके के निवासी हलकान हो चुके हैं, पर पुलिस को जैसे ‘स्मोक स्क्रीन’ ने अंधा कर दिया हो। खबरें छपती हैं, तो दो-चार वेटर पकड़ लिए जाते हैं, लेकिन असली खिलाड़ी, यानी संचालक – वो तो जैसे पुलिसिया दोस्ती निभा रहे हों।
खंदारी बाजार चौकी क्षेत्र में तो कहावत बन चुकी है – जहां पुलिस की निगरानी, वहां हुक्का की मेहरबानी! सूत्रों की मानें तो मिलीभगत की कहानियां चाय की दुकानों से लेकर चौकी तक गर्म हैं। कार्रवाई की ख़बर पता चलने पर इन हुक्का बारों को अंदर से बंद कर लिया जाता है, ताकि अंदर की आ जा न सके।
अब उम्मीदों की सिगरेट जलाए बैठे हैं लोग – कि डीसीपी पश्चिम श्री विश्वजीत श्रीवास्तव कुछ कर दिखाएंगे। पदभार संभालते ही उन्होंने अवैध हुक्का बारों पर सख्त कार्रवाई का ऐलान किया था, लेकिन अब तक कार्रवाई फाइलों में ही धुआं-धुआं होती दिख रही है।
सवाल सीधा है – क्या लखनऊ पुलिस की प्राथमिकता सिर्फ गरीब दुकानदार हैं? या फिर वो दिन भी आएगा जब ये हुक्का माफिया भी ‘क़ानून की कसौटी’ पर कसे जाएंगे? या फिर नशे के इस कारोबार पर भी पुलिस अपनी ‘आँख मूंद ली’ वाली नीति जारी रखेगी?
फिलहाल तो कैसरबाग में नाबालिगों का भविष्य और पुलिस की नीयत – दोनों ही धुएं में उड़ते दिख रहे हैं।