
उन्नाव।जनपद के कृषि विज्ञान केंद्र धौरा विकास खण्ड हसनगंज जनपद उन्नाव के सभी विकास खण्डों के अध्यापकों को मिलेट्स पुनरोद्धार कार्यक्रम योजना के तहत स्कूल कैरीकुलम में 50 अध्यापकों को श्री अन्न से बने खाद्य पदार्थों को बनाने की प्रक्रिया से प्रशिक्षित किया गया।
उप कृषि निदेशक डा. मुकुल तिवारी ने बताया है कि श्री अन्न की खेती हमारे पूर्वज किया करते थे और उनका मुख्य भोजन श्री अन्न ही था और वें लोग बिना किसी बीमारी के अपना जीवन यापन करते थे। जब लोग श्री अन्न खाते थे तब लोगों को दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती थी क्योंकि तब मधुमेह उच्च रक्तचाप हाथ से संबंधित कोई भी दिक्कत नहीं होती थी और न ही लोगों को कैंसर होता था। श्रीयां की खेती में पानी और उर्वरक की आवश्यकता बहुत ही कम होती है लेकिन इसका प्रोसेस गेंहू और धान की तुलना में अधिक श्रम वाला है इसीलिए लोगों ने श्री अन्न को छोड़कर धान और गेहूं की खेती को बढ़ावा देते हैं। गेहूं और चावल को खाने के बाद ही हम लोग उच्च रक्तचाप मधुमेह आदि बीमारियों से ग्रसित हुए है। आप सभी अपने भोजन में श्री अन्य जैसे रागी, सांवां, कोदो, काकुन, छोटी कंगनी, रामदाना, ज्वार, बाजरा आदि को जरूर शामिल करें।

कृषि विज्ञान केंद्र की वैज्ञानिक डा0 अर्चना सिंह ने जनपद के सभी विकास खण्डों से आये अध्यापकों को श्री अन्न रागी, सांवां, कोदो, काकुन, छोटी कंगनी, रामदाना, ज्वार, बाजरा आदि से बनने वाले व्यंजन की बनाने कि विधि और उससे होने वाले शारीरिक लाभ की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने अध्यापकों को बताया कि अपने स्कूल में बच्चों के मिड-डे-मील में भी श्री अन्न को शामिल करवायें। श्री अन्न से रोटी, चावल के अलावा बिस्कुट, नमकीन, मठ्ठी, डोसा, सैंडविच खीर, पुलाव, खिचड़ी, लड्डू, पेड़ा, बर्फी भी बना सकते हैं। डा रंजन द्विवेदी ने अध्यापकों को बताया कि श्री अन्न दो प्रकार के होते हैं पहला वो जिसे हम चावल के रूप में सांवां, कोदो, काकुन, छोटी कंगनी, कुटकी तथा ज्वार, बाजरा, कुट्टू के आटे के रूप में एवं ज्वार, बाजरा, सांवां कोदो को हम पुलाव, खिचड़ी तथा मसालेदार चावल बना कर अपने भोजन में शामिल कर सकतें हैं।
