संवाददाता इरफान कुरैशी
एक समय था जब पत्रकार द्वारा कलम के दम पर बड़े-बड़े आंदोलनों को जन्म दिया जाता था,मगर आज पत्रकारिता वसूली,दलाली और मुखबिरी बन कर रह गई है।
जो पत्रकार क़लम के दम पर सरकार तक की चूलें हिलाने की ताक़त रखता हो वो पत्रकार आज सुपरवाइज़ार की शिकायत तक सिमित रह गया है। मात्र इसलिए महीना वसूली जो मिल रही है अब ज़ियादा चाहिए।
पत्रकारिता एक जुनून है, पत्रकारिता एक गौरव है, पत्रकार को कलम पर बड़ा गुरुर होता है। और होना भी चाहिए कलम से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।
शर्त इतनी है कि क़लम निष्पक्ष एवं इमानदार पत्रकार के हाथों में होना चाहिए। फिर तो वह बड़ी से बड़ी कुर्सी तक हिला देता है।
आज भी लोग निष्पक्ष लिखने वालों को अपने दिल का दर्द खुलकर बयां कर देते हैं। मालूम होता है कि यह हमारे हित में निष्पक्ष लिखेंगे और हम को न्याय दिलाएंगे।
इस पवित्र पेशे को कुछ कथित पत्रकारों ने विकास प्राधिकरण कार्यालय को धन उगाही का ज़रिया बना लिया है।
सूत्रों की माने तो विकास प्राधिकरण अधिकारियों से पत्रकारों को मिलती है, वसूली के नाम पर महीना रक़म।
ऐसा ही एक ताजा मामला अपने आप को वरिष्ठ पत्रकार कहने वाले एक पत्रकार का है। अभी तक वो लालबाग स्थित लखनऊ विकास प्राधिकरण कार्यालय से रु3000, महीना,वसूली करते थे अब ₹15000 महीना उन्हें चाहिए। अधिकारी द्वारा मना करने पर उक्त पत्रकार ने सुपरवाइज़ार की शिकायत अपर सचिव से कर डाली।
जबकि अवैध निर्माण रोकने और उसपर कार्रवाही करने की ज़िम्मेदारी ज़ोनल अधिकारी की होती है। ना कि सुपर वाइज़ार की, लेकिन इस पत्रकार को इतना भी ज्ञान नहीं की शिकायत किसकी करनी चाहिए।
कुछ कथित पत्रकारों ने पत्रकारिता को सिर्फ धन उगाही का माध्यम बना रखा है। ऐसे लोग पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को बदनाम कर रहे है।
हालंकि परिवर्तन जोन-6 एवं जोन-7 में अवैध निर्माण चरम पर है। इसी का फायदा कथित पत्रकार उठाते है। कहीं न कहीं अधिकारियों की भी कोर दबती है। जिसके कारण अधिकारी भी नतमस्तक हो जाते है। यही कारण है कि उनको धन उगाही का मौक़ा मिलता है।