संवाददाता सचिन पाण्डेय
उन्नाव। देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा का मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया गया, लेकिन अब भी बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल से दूर हैं।
शहरों कस्बों की सड़कों पर, तालाबों के किनारे या फिर कूड़े के ढ़ेर पर सुबह से लेकर शाम तक कूड़े की ढेर में प्लास्टिक, लोहा आदि कबाड़ चुनते तथा बोरी में भरते दर्जनों बच्चे दिख जाते हैं। जिन हाथों में किताब-कॉपी होनी चाहिए, वो बच्चे दो जून की रोटी के लिए कूड़ा चुन रहे हैं। पीठ पर किताबों की बोझ नहीं बल्कि प्लास्टिक बोरी में रद्दी, बोतलें और गंदगी रहती है। होश संभालते ही बीमारियों की परवाह किए बिना कूड़े के ढेर से ही अपनी दिन की शुरुआत करते हैं। जबकि गरीब बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लेकिन कूड़े की ढेर पर कबाड़ चुनते बच्चों की टोली सरकारी घोषणा और वायदों की हकीकत ब्यां कर दे रहीं हैं।
सुबह होते ही खाली बोरी लेकर बच्चे निकल जाते हैं बाहर
सुबह होते ही प्लास्टिक का थैला या फिर बोरा लेकर निकल पड़ने वाले इन बच्चों के स्वास्थ्य या सुरक्षा की गारंटी कोई लेने को तैयार नहीं है। सरकारी महकमा से लेकर स्वयंसेवी संस्थाएं तक अपनी जिम्मेवारी का निर्वहण करने में पूरी तरह विफल हैं।