संवाददाता इरफान कुरैशी
लखनऊ। धर्मनिरपेक्षता का सियासी मुखौटा ओढ़े कांग्रेस का देश मे मुस्लिम पीएम की मांग स्वार्थ में लिप्त पार्टी का कोरा दिखावा मात्र है। बेचारगी के आलम में डूबी कांग्रेस मुस्लिम हितैषी होने का स्वांग रच रही है। 85 फीसदी पसमांदा समाज से किसी चेहरे को सत्ता, संगठन व सदन में अब तक कोई जगह देने के बजाय उसके हक़ हुकूक पर कैंची चला चुकी कांग्रेस आखिर किस मुंह से हितैषी होने की बात कर रही। अशराफ मुसलमानों पर भरोसा कर अपनी दुर्गति करवा चुकी पंजा छाप पार्टी ने खुद यह मौका क्यों गंवाया। क्यों सहानुभूति बटोरने में दशकों लगा दिए। कांग्रेस नेताओं की मुस्लिम पीएम की मांग मौका व नजाकत को देखते हुए की गई है। इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नही है। यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने कही है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम शासक बिठाने की कथित हिमायती बन रही कांग्रेस और उसके नेताओ को एक बार आईने में खुद का चेहरा देख लेना चाहिए। ढोंग करने में माहिर नेताओं को दशकों सत्ता का लाभ उठाने के दौरान 85 फीसदी पसमांदा समाज नजर नही आया। बस सत्ता में बैठे रहने के लिए चाटुकार विदेशी मुस्लिम नेताओं की चापलूसी में वक़्त गुजारा। पसमांदा समाज के हक़ हुकूक को निगल गई कांग्रेस सरकार के पूर्ववर्ती नेताओ से लेकर वर्तमान परिवार को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़े पसमांदा मुसलमानों को ख्याल क्यों नही आया। उन्होंने कहा कि कांग्रेसी नेता केवल राग अलाप रहे हैं। लंबे समय से सत्ता से दूर रहने की वजह से उन्हें सही गलत का अंदाजा नही रह गया, वैसे भी उल्टे सीधे बयान देना पार्टी नेताओं का शगल बन गया है। धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े कांग्रेस को अब भूले बिसरे याद आने लगे हैं, जो हैरत से लबरेज है।
प्रदेश अध्यक्ष ने आंकड़ों के जरिये अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत के सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित राज्यों को मिलाकर कुल 4120 विधानसभा सीट है। जिसमे 2872 सामान्य सीट है, 607 सीट अनुसूचित जातियों और 554 अनु० जनजाति के लिए आरक्षित है। यानि कि अनुसूचित जात लिए आरक्षित 607 सीट पर मुसलमान चुनाव नहीं लड़ सकता है। जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 554 सीट पर भी कुछ सीटों पर छोड़कर यानी हर सीट से मुसलमान चुनाव नहीं लड़ सकता। अर्थात 1161 यानि लगभग 28 प्रतिशत विधानसभा सीट से मुसलमानों को पहले ही वंचित कर दिया गया है। जबकि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से हिन्दू धर्म से ही जुड़ाव है। इस प्रकार हिन्दू समुदाय का प्रतिनिधित्व सभी 4120 सीटों पर है जबकि मुसलमानों का मात्र 2872 सीटों पर वजह अनुच्छेद 341(3)। एक लोकतान्त्रिक और सेक्युलर देश में 28 प्रतिशत सीट से किसी एक समुदाय को दूर रखना लोकतंत्र के लिए घातक है। अपनी कयादत और सेक्युलरिज्म के सभी पुरोधा को चाहिये कि उस 28 प्रतिशत सीट पर भी मुसलमानों की प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिये आवाज उठाये। इसका सबसे आसान तरीका पसमांदा मुसलमानों की कुछ बिरादरियों को अनुसूचित जाति में शामिल करके किया जा सकता है। जब उन 28 प्रतिशत सीट पर पसमांदा का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा तो खुद-ब-खुद मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा इसी तरह 543 लोकसभा सीटो मे से 131 सीटे भी आरक्षित है यानि मुसलमान केवल 412 सीट पर ही चुनाव लड सकता है।
वसीम राईन ने कहा कि सबसे ताज्जुब तो तब होता है जब देश की जितनी भी तथाकथित सेकुलर पार्टी मुसलमानों के हमदर्द सियासी लीडर हैं। यह लोग जानबूझकर या साजिशन पसमांदा मुसलमानों के साथ, लगातार होने वाले इस सियासी नाइंसाफी पर गंभीरता से कोई आवाज उठाते ही नहीं। आखिर क्यों ना सभी मुसलमान सभी रिजर्व सीटों पर इन नकली धर्मनिरपेक्ष सियासी पार्टियों को वोट देने का बहिष्कार करके अपने समाज के साथ होने वाली इस सियासी नाइंसाफी का विरोध करें।