शिक्षक दिवस के सुअवसर पर पी. जी. डी. ए. वी. महाविद्यालय की भारतीय संस्कृति सभा व राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्त्वावधान में ‘राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत द्वीप प्रज्ज्वलन एवं सरस्वती वंदना के साथ की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, प्रो. डी. एस. रावत (अधिष्ठाता, परीक्षा, दिल्ली विश्वविद्यालय), संरक्षक, प्रो. कृष्णा शर्मा (प्राचार्या, पी. जी. डी. ए. वी. महाविद्यालय), कोषाध्यक्ष, डॉ. सुरेन्द्र कुमार व संयोजक, रामवीर सिंह ने विधिवत रूप से द्वीप प्रज्ज्वलन किया। कार्यक्रम के विषय की रूपरेखा से इतिहास विभाग के प्राध्यापक डॉ. चंद्रपाल सिंह ने परिचय करवाया व इसके पश्चात स्वागत भाषण देते हुए प्राचार्या, प्रो. कृष्णा शर्मा ने गुरु की गरीमा और महत्त्व को रेखांकित किया और गुरु के दर्जे को माँ की तुलना में सर्वोपरि माना। इसके साथ ही उन्होंने अपने उद्बोधन में विद्यार्थियों को शिक्षकों के प्रति सम्मान व कृतज्ञता का भाव रखने के लिए प्रेरित किया।
स्वागत भाषण के पश्चात डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने शिक्षा और शिक्षक की भूमिका पर जोर दिया। राष्ट्र के निर्माण में शिक्षक के कर्तव्यों पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हो सकता है शिक्षकों की विचारधारा अलग-अलग हो परंतु उनका मुख्य ध्येय विद्यार्थियों के भविष्य का निर्माण व उनका सर्वांगीण विकास होना चाहिए, इसलिए राष्ट्र और समाज के सम्पूर्ण व सकारात्मक विकास में शिक्षकों की भूमिका अहम है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. डी. एस. रावत ने गुरु की महीमा को भारतीय इतिहास के परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कैसे भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊपर माना गया है। प्रो. रावत ने वर्तमान समय में गुरु की गिरती गुणवत्ता पर भी चिंता जाहिर की और माना कि इससे विद्यार्थियों के जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि योग्य शिक्षकों की कमी भारत के भविष्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी। इसके पश्चात रामवीर सिंह जी ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी सुधीजनों को धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापक व अनेक छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।