
जगदीशपुर, अमेठी। योगी सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लगातार प्रयासरत है, लेकिन जगदीशपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में 12 वर्षों से जमे चिकित्साधिकारी सरकारी आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। शासन द्वारा चिकित्सकों के तीन वर्ष से अधिक एक ही स्थान पर न रहने के स्पष्ट निर्देश हैं, लेकिन राजनीतिक संरक्षण और प्रशासनिक उदासीनता के चलते तबादले केवल कागजों तक सीमित रह गए हैं।
स्थानीय जनता इस बदहाल व्यवस्था से त्रस्त है। इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर नदारद रहते हैं और उनकी जगह फार्मासिस्ट ही मरीजों का उपचार करते हैं। डॉक्टर की अनुपस्थिति के बारे में पूछने पर मरीजों को बताया जाता है—”डॉक्टर साहब अभी उठकर गए हैं, खाना खाने या चाय पीने।” इस तरह के जवाब अब आम हो चुके हैं, जिससे मरीजों का स्वास्थ्य विभाग से भरोसा उठता जा रहा है।
अस्पताल में मुफ्त दवाइयों की उपलब्धता के बावजूद मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर्स से दवा खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। फार्मासिस्ट छोटी पर्ची पर दवा लिखकर बाहर से दवा लाने की सलाह देते हैं, जिससे गरीब जनता आर्थिक रूप से शोषित हो रही है।
स्थिति इतनी गंभीर है कि अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट और डेंटल सर्जन के पद वर्षों से खाली पड़े हैं। कुछ चिकित्सक जो अन्य स्वास्थ्य केंद्रों या जिला अस्पताल में अटैच हैं, वे सरकारी आवासों पर कब्जा जमाए बैठे हैं और वहीं निजी मरीज देखने में व्यस्त हैं। सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों को बहाने बनाकर निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की ओर रेफर किया जाता है, जिससे गरीब जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है।
एक विश्वसनीय सूत्र के अनुसार, डॉ. संजय भेल अपने सरकारी आवास पर ‘राजकली क्लिनिक’ के नाम से निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं। इस क्लिनिक का रजिस्ट्रेशन किसी और के नाम पर है, लेकिन असली संचालन वही कर रहे हैं। हर दिन सुबह-शाम यहां ओपीडी चलाई जाती है, जिससे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी तरह अनदेखी हो रही है।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. अंशुमान सिंह ने स्वीकार किया कि डॉ. संजय का स्थानांतरण सिंहपुर, अभिषेक शुक्ला का फुरसतगंज और एक अन्य का तिलोई किया गया था, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण ये चिकित्सक आज भी यथावत कार्यरत हैं। सीएमओ ने यह भी कहा कि जिन चिकित्सकों की तैनाती अवधि पूरी हो चुकी है, उनके स्थानांतरण के लिए शासन को पत्र भेजा जा चुका है, लेकिन जनपद में चिकित्सकों की कमी के चलते स्थानांतरण नहीं हो पा रहे हैं।
इसके अलावा, सीएमओ ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ पत्रकारों ने अपने परिवारजनों के नाम पर मेडिकल स्टोर्स और नर्सिंग होम संचालित कर रखे हैं और वे अपने-अपने तरीके से डॉक्टरों पर दबाव बनाने या उन्हें संरक्षण देने का प्रयास करते हैं। यह गतिविधियां स्वास्थ्य सेवाओं को और बाधित कर रही हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या शासन-प्रशासन इस गंभीर लापरवाही और भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई करेगा, या फिर यह मामला भी अन्य फाइलों की तरह धूल फांकता रह जाएगा?