मुजफ्फरनगर के किसान रामरतन तमंचा रखने के झूठे इल्जाम में ऐसे उलझे कि 3 महीने जेल में रहे और जिंदगी की सारी कमाई इसी में लगा दी अपनी 2 बेटियों को नही पढ़ा पाए 26 साल तक कोर्ट के चक्कर काटने पड़े
करीब दो साल पहले निचली अदालत ने उन्हें वरी कर दिया था तो राज्य सरकार द्वारा रामरतन के विरुद्ध अपील की अब वो 70 साल के है फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और डटकर मुकदमे की पैरवी की जिसके बाद जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने राज्य सरकार द्वारा की गई दोबारा सुनवाई की अपील को खारिज कर दिया ।
वकील साहब की फीस और मुंशी के खर्च में जिंदगी की आधी कमाई चली गई। पूरा घर परेशान रहा। पैसे की तंगी में 2 बेटियां पढ़ नहीं पाई। पत्नी बीमार रहने लगी। अब मेरा वो समय वापस नहीं आ सकता है।
पुलिस ने गांव की चुनावी रंजिश में उन्हें घर से उठाया था। तमंचा लगाकर जेल भेज दिया। मुकदमा की सुनवाई 26 साल चली। तारीख वाले दिन उन्हें सुबह की कोर्ट जाना पड़ता था। पूरे दिन की मजदूरी जाती थी।
यह है पूरा मामला
कोतवाली पुलिस ने 2 नवंबर 1996 को गांव रोहाना खुर्द के रामरतन को तमंचा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया। करीब 3 महीने बाद वो जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आए।
सीजेएम कोर्ट में रामरतन के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई हुई। उन्होंने डटकर मुकदमे की पैरवी की पुलिस तमंचा कोर्ट के सामने पेश नहीं कर पाई। नोटिस जारी हुए। लेकिन पुलिस कोर्ट में गवाही देने नहीं पहुंची। कोर्ट ने रामरतन को बरी कर दिया था।
करीब 24 साल बाद सीजेएम मनोज कुमार जाटव ने 9 सितंबर 2020 को रामरतन को सबूत नहीं होने का हवाला देकर बरी किया।