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फाइलेरिया मरीजों के रुग्णता प्रबंधन एवं दिव्यांगता के निवारण के लिए अयोजित हुई कार्यशाला,स्वास्थ्य अधिकारियों को दी गई जानकारी

सचिन पांडे

उन्नाव।स्वास्थ्य विभाग के तत्वावधान एवं स्वयंसेवी संस्था पाथ के सहयोग से बृहस्पतिवार को फाइलेरिया मरीजों के रुग्णता प्रबंधन एवं दिव्यांगता निवारण(एमएमडीपी) विषय पर स्वास्थ्य अधिकारियों की कार्यशाला आयोजित हुई । यह एक दिवसीय कार्यशाला मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में सम्पन्न हुई ।
इस मौके पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सत्यप्रकाश द्वारा समस्त प्रतिभागियों को बताया गया कि फाइलेरिया जैसे रोग से मुक्ति दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयासरत है। नाइट सर्वे, रोग प्रबंधन और प्रशिक्षण के माध्यम से लोगों को जागरूक बनाया जा रहा है।
जिसे हाथी पाँव भी कहते हैं , यह मच्छरजनित बीमारी है जो कि गंदे ठहरे पानी में मच्छरों के पनपने से होती है। इस बीमारी से बचाव ही इसका इलाज है । इस बीमारी में लसिका ग्रंथियां (लिम्फ़ नोड) प्रभावित होती हैं और एक बार जब यह रोग हो जाता है तो यह पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाता है ।दवा के सेवन से माइक्रो फाइलेरिया को खत्म कर रोग को बढ़ने से रोक सकते है ।यह बीमारी व्यक्ति को आजीवन विकलाँग बना देती है । फ़ाईलेरिया से बचाव के लिए सरकार द्वारा साल में एक बार सामूहिक दवा सेवन (एमडीए) अभियान चलाया जाता है।

इसके तहत स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को एल्बेंडाज़ोल और डाईइथाइलकार्बामजीन की गोलियाँ खिलाते हैं।साल में एक बार और लगातार पाँच साल तक इस दवा का सेवन करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है ।दो साल से कम आयु के बच्चों, गर्भवती और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को इस दवा का सेवन नहीं करना होता है । इन दवाओं के सेवन का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है । कुछ लोगों में दवा के सेवन के बाद चक्कर आना, जी मिचलाना जैसे दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है । यह अपने आप ठीक हो जाते हैं । इसका मतलब यह होता है कि उसके शरीर में फाइलेरिया के जीवाणु हैं ।फाइलेरिया के जीवाणु व्यक्ति के शरीर में पाँच से 15 साल तक सुप्तावस्था में रहते हैं और अनुकूल परिस्थिति आने में सक्रिय हो जाते हैं ।

राष्ट्रीय वेक्टर जनित नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. अरविंद कुमार ने बताया कि यदि ज्यादा दिनों तक बुखार रहे, पुरुष के जननांग में या महिलाओं के स्तन में दर्द या सूजन रहे और खुजली हो, हाथ-पैर में भी सूजन या दर्द रहे तो यह फाइलेरिया होने के लक्षण हैं। तुरंत चिकित्सक से संपर्क कर जाँच कराएँ। मरीज नियमित रूप से बताये गए दवा का सेवन करें और एमडीए अभियान के दौरान अपने परिवार और आसपास के लोगों को दवा खाने के लिए प्रेरित करें।
इस रोग से बचना है, तो आस-पास सफाई रखना जरूरी है। दूषित पानी, कूड़ा जमने ना दें, जमे पानी पर कैरोसीन तेल छिड़क कर मच्छरों को पनपने से रोकें, सोने के समय मच्छरदानी का उपयोग करें।

जिला मलेरिया अधिकारी रमेश चंद्र यादव ने बताया कि फाइलेरिया रोगियों की पहचान के लिए साल में एक बार नाइट ब्लड सर्वे किया जाता है । रात में लोगों के खून के नमूने की जांच कर संक्रमण की स्थिति का पता लगाया जाता है क्योंकि फाइलेरिया के जीवाणु, जिन्हें हम माइक्रोफाइलेरिया कहते हैं वह रात में सक्रिय होते हैं। इसलिए फाइलेरिया के मरीजों को चिन्हित करने का काम रात में ही किया जाता है ।
जिला मलेरिया अधिकारी ने बताया कि पिछले माह फाइलेरिया के 25 मरीजों को एमएमडीपी का प्रशिक्षण देते हुए किट बांटी जा चुकी है।
पाथ संस्था के स्टेट नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज (एन.टी.डी.) हेड डा शोएब, समस्त प्रतिभागियों को फाइलेरिया रोगियों की बेहतर देखभाल किस तरीके से की जाय, देखभाल के समय क्या-क्या सावधानियां रखनी चाहिए ।इन सबकी विस्तृत जानकारी प्रदान की ।
इस कार्यशाला में जिला पब्लिक हेल्थ ऑफिसर डा अंकिता सिंह, जिला एपिडेमियोलॉजिस्ट डा. रवि यादव, जनपद के सभी स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी, बायोलॉजिस्ट के.के.गुप्ता ,चिकित्सा अधिकारी बी.सी.पी. एम., ,मलेरिया निरीक्षक विवेक दीक्षित, ऋषभ श्रीवास्तव, वरिष्ठ प्रयोगशाला तकनीशियन रामचंद्र तिवारी के अलावा, पाथ संस्था की जोनल अधिकारी डा. पूजा धुले,स्टेट द्वारा प्रतिभाग किया गया ।

Rishabh Tiwari

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