लखनऊ: 05 जून, 2022 भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी ने आज जनपद संत कबीर नगर स्थित संत कबीर दास परिनिर्वाण स्थल, मगहर में शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के विकास से सम्बन्धित परियोजनाओं का लोकार्पण किया। इस अवसर पर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी उपस्थित थे।
इन परियोजनाओं में 31.49 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान, भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के अन्तर्गत 17.61 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इंटरप्रेटेशन सेन्टर तथा 37.66 लाख रुपये की लागत से कबीर निर्वाण स्थली, मगहर के सौन्दर्यीकरण के कार्य सम्मिलित हैं।
इन परियोजनाओं में 31.49 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान, भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के अन्तर्गत 17.61 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इंटरप्रेटेशन सेन्टर तथा 37.66 लाख रुपये की लागत से कबीर निर्वाण स्थली, मगहर के सौन्दर्यीकरण के कार्य सम्मिलित हैं।
इस अवसर पर राष्ट्रपति जी, राज्यपाल जी एवं मुख्यमंत्री जी ने वृक्षारोपण भी किया। मुख्यमंत्री जी द्वारा राष्ट्रपति जी को कबीर दास जी के दोहे लिखे टेलीग्राफिक अंगवस्त्र तथा ‘एक जनपद एक उत्पाद’ योजना का स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम के दौरान पर्यटन से सम्बंधित एक लघु फिल्म भी दिखाई गयी।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा कि संत कबीर दास की निर्वाण स्थली साम्प्रदायिक एकता की अदभुत मिसाल है। यहां पर समाधि और मजार एक साथ निर्मित हैं। लगभग 700 वर्ष गुजर जाने के बाद भी उनकी शिक्षाएं एवं वाणी जनसाधारण से लेेकर बुद्धिजीवी वर्ग में लोकप्रिय है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि संतों के आगमन से धरती पवित्र हो जाती है। संत कबीर मगहर में लगभग 3 वर्ष तक रहे। ऊसर, बंजर तथा अभिशप्त मानी जाने वाली यह भूमि उनके आगमन से खिल उठी। कबीर दास जी के आमंत्रण पर नाथ पीठ के सिद्ध पुरुष भी यहां पधारे थे। उनके प्रभाव से यहां का तालाब जल से भर गया। कबीर दास जी सच्चे पीर थे। वह लोगों की पीड़ा समझते थे और उस पीड़ा को दूर करने के उपाय करते थे।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कबीर दास जी का पूरा जीवन मानव धर्म का श्रेष्ठतम उदाहरण है। कबीर दास जी ने उस समय के विभाजित समाज में समरसता लाने के लिए सामाजिक मेल-जोल की बारीक कताई की। ज्ञान के रंग से सुन्दर रंगाई की, एकता और समन्वय का मजबूत ताना-बाना तैयार किया और समरस समाज के निर्माण की चादर बुनी। इस चादर को उन्होंने बहुत सावधानी से ओढ़ा और कभी मैला नहीं होने दिया।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कबीर एक गरीब और वंचित परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उन्होंने उस वंचना को कभी अपनी कमजोरी नहीं समझा, बल्कि उसे अपनी ताकत बनाया। कबीर दास जी ने सदैव इस बात पर बल दिया कि समाज के कमजोर से कमजोर वर्ग के प्रति संवेदना और सहानभूति रखे बिना मानवता की रक्षा नहीं हो सकती। हमारे समाज ने उनकी वाणी और शिक्षा को दिल से स्वीकार किया। यही कारण है कि दुनिया की अनेक बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का नामो निशान मिट गया, तब भी हमारा देश अपनी अटूट विरासत को लेकर अपने पांव पर मजबूती से खड़ा है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कबीर दास जी ने हमेशा अन्धविश्वास, कुरीतियांे, आडम्बरों और भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया। यही कारण था कि वह अंतिम समय में काशी छोड़कर मगहर चले आए। वह एक सहज संत थे। वह मानते थे कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं है। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। कबीर दास जी ने गृहस्थ जीवन को भी संतों की तरह जिया। उनकी पवित्र वाणी ने सुदूर पूर्व में श्रीमंत शंकर देव से लेकर पश्चिम में संत तुकाराम और उत्तर में गुरुनानक से लेकर छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास को प्रभावित किया।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा कि संत कबीर दास की निर्वाण स्थली साम्प्रदायिक एकता की अदभुत मिसाल है। यहां पर समाधि और मजार एक साथ निर्मित हैं। लगभग 700 वर्ष गुजर जाने के बाद भी उनकी शिक्षाएं एवं वाणी जनसाधारण से लेेकर बुद्धिजीवी वर्ग में लोकप्रिय है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि संतों के आगमन से धरती पवित्र हो जाती है। संत कबीर मगहर में लगभग 3 वर्ष तक रहे। ऊसर, बंजर तथा अभिशप्त मानी जाने वाली यह भूमि उनके आगमन से खिल उठी। कबीर दास जी के आमंत्रण पर नाथ पीठ के सिद्ध पुरुष भी यहां पधारे थे। उनके प्रभाव से यहां का तालाब जल से भर गया। कबीर दास जी सच्चे पीर थे। वह लोगों की पीड़ा समझते थे और उस पीड़ा को दूर करने के उपाय करते थे।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कबीर दास जी का पूरा जीवन मानव धर्म का श्रेष्ठतम उदाहरण है। कबीर दास जी ने उस समय के विभाजित समाज में समरसता लाने के लिए सामाजिक मेल-जोल की बारीक कताई की। ज्ञान के रंग से सुन्दर रंगाई की, एकता और समन्वय का मजबूत ताना-बाना तैयार किया और समरस समाज के निर्माण की चादर बुनी। इस चादर को उन्होंने बहुत सावधानी से ओढ़ा और कभी मैला नहीं होने दिया।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कबीर एक गरीब और वंचित परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उन्होंने उस वंचना को कभी अपनी कमजोरी नहीं समझा, बल्कि उसे अपनी ताकत बनाया। कबीर दास जी ने सदैव इस बात पर बल दिया कि समाज के कमजोर से कमजोर वर्ग के प्रति संवेदना और सहानभूति रखे बिना मानवता की रक्षा नहीं हो सकती। हमारे समाज ने उनकी वाणी और शिक्षा को दिल से स्वीकार किया। यही कारण है कि दुनिया की अनेक बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का नामो निशान मिट गया, तब भी हमारा देश अपनी अटूट विरासत को लेकर अपने पांव पर मजबूती से खड़ा है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कबीर दास जी ने हमेशा अन्धविश्वास, कुरीतियांे, आडम्बरों और भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया। यही कारण था कि वह अंतिम समय में काशी छोड़कर मगहर चले आए। वह एक सहज संत थे। वह मानते थे कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं है। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। कबीर दास जी ने गृहस्थ जीवन को भी संतों की तरह जिया। उनकी पवित्र वाणी ने सुदूर पूर्व में श्रीमंत शंकर देव से लेकर पश्चिम में संत तुकाराम और उत्तर में गुरुनानक से लेकर छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास को प्रभावित किया।