
लखनऊ।।राजनीतिशास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में 07 अप्रैल 2025 से 08 अप्रैल 2025 तक आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन समारोह संपन्न हुआ। संगोष्ठी का विषय “राज्य, समाज और राष्ट्र के बीच अंतर्संबंधः भारतीय परिपेक्ष्य” था, जिसमें देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए विद्वानों ने भाग लिया।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश की उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी उपस्थित रहीं। उनके साथ लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय, राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर संजय गुप्ता और संगोष्ठी के संयोजक डॉ. जितेंद्र कुमार भी मंच पर मौजूद थे।
मुख्य अतिथि रजनी तिवारी ने अपने संबोधन में देश के विकास में शिक्षा की महती भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सरकार की योजना ‘अंत्योदय से सर्वोदय’ पर आधारित है, जिसका लक्ष्य समाज के हर वर्ग तक शिक्षा और विकास की पहुंच सुनिश्चित करना है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के मुख्य उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह नीति शिक्षा में भारतीय मूल्यों और संस्कृति को प्राथमिकता देती है, जो राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने संगोष्ठी की सफलता पर खुशी जताई और विशेष रूप से राजनीति विज्ञान विभाग के नवनियुक्त शिक्षकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस तरह के शैक्षिक आयोजनों से न केवल शोध और विचारों का आदान-प्रदान होता है, बल्कि युवा शिक्षकों और छात्रों को प्रेरणा भी मिलती है।
संगोष्ठी के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से आए विद्वानों ने राज्य, समाज और राष्ट्र के बीच के संबंधों पर अपने विचार और शोध पत्र प्रस्तुत किए, जो भारतीय परिपेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक थे। समापन सत्र का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ, जो संगोष्ठी की गरिमा को और बढ़ा गया।
इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के समस्त शिक्षक और कर्मचारी, जिनमें प्रोफेसर संजय गुप्ता (विभागाध्यक्ष), प्रोफेसर मनुका खन्ना, प्रोफेसर कमल कुमार, प्रोफेसर कविराज, डॉ. अमित कुशवाहा, डॉ. शिखा चौहान, डॉ. राजीव सागर, डॉ. माधुरी साहू, डॉ. अनामिका, डॉ. जितेंद्र कुमार, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. तुंगनाथ मुआर, डॉ. दिनेश यादव, डॉ. सत्यम तिवारी समेत अन्य शिक्षक और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
यह संगोष्ठी न केवल शैक्षिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही, बल्कि यह भारतीय समाज और राजनीति के अध्ययन में नए आयाम स्थापित करने में भी सहायक सिद्ध हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय और आईसीएसएसआर के इस संयुक्त प्रयास को भविष्य में भी जारी रखने की उम्मीद जताई जा रही है।