
नगर संवाददाता सचिन पाण्डेय
उन्नाव। जिले के महिला अस्पताल की कार्यशैली पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच अब अस्पताल प्रशासन ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया है। महिला अस्पताल की सीएमएस ने नया आदेश जारी कर पत्रकारों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। अब किसी भी मीडियाकर्मी को अस्पताल में खबर संकलन के लिए सीएमएस की अनुमति लेनी होगी।
कमियां छिपाने की साजिश?
इस फैसले के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर अस्पताल प्रशासन छिपाना क्या चाहता है? हाल ही में महिला अस्पताल में एक्सपायर्ड दवाएं देने का मामला उजागर हुआ था, जिसे प्रमुखता से अखबारों और डिजिटल मीडिया ने कवर किया था। इसके बाद प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई थी। माना जा रहा है कि इसी से बौखलाए अस्पताल प्रशासन ने पत्रकारों की आवाज दबाने के लिए यह तानाशाही फरमान जारी कर दिया।
दलालों पर लगाम लगाने में फेल, मगर पत्रकारों पर सख्ती!
अस्पताल में मरीजों को सही इलाज नहीं मिल रहा, दलाल सक्रिय हैं, लापरवाही की खबरें आम हो चुकी हैं—लेकिन इन मुद्दों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके बजाय प्रशासन ने पत्रकारों को ही बाहर का रास्ता दिखाने का फैसला कर लिया! आखिर यह किसके इशारे पर किया जा रहा है?
सीएम योगी के आदेश की अवहेलना!
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमेशा पत्रकारों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार की अपील करते हैं और पारदर्शिता की वकालत करते हैं। लेकिन महिला अस्पताल की सीएमएस ने मुख्यमंत्री के इस निर्देश की धज्जियां उड़ा दी हैं। सवाल उठता है कि क्या प्रशासन अब स्वतंत्र मीडिया को दबाने की कोशिश कर रहा है?
पत्रकार संगठनों में आक्रोश, उठी जांच की मांग
पत्रकारों के प्रवेश पर रोक के इस फैसले को लेकर मीडिया संगठनों में भारी आक्रोश है। जिले के वरिष्ठ पत्रकारों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार देते हुए डीएम और स्वास्थ्य विभाग से जवाब तलब करने की मांग की है।
क्या पत्रकारों की आवाज दबाने में कामयाब होगा अस्पताल प्रशासन?
अब देखने वाली बात होगी कि इस तानाशाही आदेश के खिलाफ पत्रकार बिरादरी और आम जनता क्या रुख अपनाती है। क्या जिला प्रशासन इस पर कार्रवाई करेगा या फिर अस्पताल प्रशासन की मनमानी यूं ही चलती रहेगी? सवाल बड़ा है, जवाब का इंतजार रहेगा!