
-राकेश कुमार श्रीवास्तव:प्रमुख संवाददाता
14 नवंबर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को नमन। जी हां पंडित जवाहरलाल नेहरू लोकतंत्र की मूल अवधारणा के शिल्पी आधुनिक भारत के निर्माता पंडित नेहरू इतिहास में तमाम कल्पना एवं ऐतिहासिक साक्ष्य ऐसे भी हैं कि हो सकता है नेहरू के समकक्ष कई कद्दावर राजनैतिक व्यक्तित्व… राजगोपालाचारी, सरदार बल्लभ भाई पटेल,डॉ राजेंद्र प्रसाद बिल्कुल इस पद के दावेदार हो सकते थे पर गांधी ने इन सब से ऊपर नेहरू को रखा। एक संपन्न पंडित परिवार से ताल्लुक रखने वाले नेहरू विदेश में पढ़े, कानून की पढ़ाई की। वह तत्कालिक कांग्रेस के उदारवादी रवैया से नाखुश भी थे। अपने पिता को चिट्ठी लिखा करते थे कि पिताजी आप उदारवादी कांग्रेस से अलग हो जाइए और यहां आने के बाद भी उनके अपने पिता से वैचारिक मतभेद रहे ।फिर उनको गांधी का साथ मिला। गांधी के तमाम आंदोलनों में उन्होंने शिरकत की। आज का उत्तर प्रदेश उस समय यूनाइटेड प्रोविंसेस था। यहां के आजादी आंदोलन की अगुवाई की जिम्मेदारी नेहरू के पास थी। कालांतर में कांग्रेसी एक हुए और पूर्ण स्वराज की मांग के साथ आंदोलन आगे बढ़ा। तमाम आंदोलनों बलिदानों और देशव्यापी विरोध के कारण अंग्रेजी शासन धीरे-धीरे जर्जर हुआ। देश को आजादी हासिल हुई। नेहरू तकरीबन 10 साल विभिन्न आंदोलनों में जेल में भी रहे ।वैश्विक परिदृश्य में नेहरू का एक विशेष स्थान और सम्मान था ।अतीत के तमाम विदेशी शासन कालों के बाद देश जर्जर हो चुका था। नेहरू ने तमाम औद्योगिक गतिविधियों का संचालन किया ।भाखड़ा नांगल बांध.. स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया लिमिटेड.. आईआईटी ..आई आई एम.. आदि की स्थापना की। ये सब सरकारी संस्थान थे और सरकार द्वारा चलाए गए। आज भी उस समय के बनाए हुए आईआईटी और आईआईएम की मेरिट सर्वोच्च रहती है 17 वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहने के बाद भी नेहरू में विरोधियों की सुनने की पूरी ताकत थी। विरोध को पचाने का हुनर था। बाबा नागार्जुन जैसे जन कवि ने नेहरू के सामने उनकी असफलताओं पर खरी खोटी सुनाई; नेहरू ने सुना। नेहरू बहुत बड़ी लोकतांत्रिक विरासत को सहेज कर चले गए ।क्या लेकर गए अपने साथ कुछ भी तो नही।आज उनके तमाम पैतृक आवास देश के राष्ट्रीय संग्रहालय में तब्दील हो गए। जो युवा नेता अपने शैक्षिक जीवन काल में आनंद भवन को टिकट खरीद कर देखा करते थे वे आज देश की व्हाट्सएप और सोशल मीडिया से शिक्षित लोग तमाम तर्कों कुतर्कों के साथ नेहरू का नैतिक पतन करने पर आमादा है। पहले राजनीति का एक धर्म था अब धर्म की राजनीति है । जिनकी पैदाइश भी आजादी के आंदोलन में नहीं हुई थी वह भी उस समय पर ज्ञान गर्जना कर रहे हैं ।इतिहास को बदलने की चेष्टा नहीं की जानी चाहिए। समय का कोई ठिकाना नहीं कब किस करवट ऊंट बैठ जाए। जब नेहरू और गांधी ही प्रासंगिक नहीं रहेंगे तो फिर आप अपनी प्रासंगिकता के बारे में तो सोच भी नहीं सकते। नमन चाचा नेहरू को और बाल दिवस की शुभकामनाएं !!